मिसिर कविराय की कुण्डलिया

251 भाग

231 बार पढा गया

6 पसंद किया गया

मिसिर कविराय की                  कुण्डलिया मानुष हो कर जो नहीं, करता है उपकार। ऐसे अधम पिशाच को,बार- बार धिक्कार।। बार-बार धिक्कार, समझ उसको अपकारी। नहिं कदापि वह जीव,हुआ करता हितकारी।। कहें मिसिर ...

अध्याय

×