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मिसिर कविराय की कुण्डलिया मानुष हो कर जो नहीं, करता है उपकार। ऐसे अधम पिशाच को,बार- बार धिक्कार।। बार-बार धिक्कार, समझ उसको अपकारी। नहिं कदापि वह जीव,हुआ करता हितकारी।। कहें मिसिर ...